Friday, July 30, 2010

मेरा दर्द मेरी उड़ान

:::::नम आँखों को लिए दिल को मैंने यू समझाया,
के हाथ में आई कलम और कुछ लिखने का ख़याल आया:::::

:: नम हो आई आँखे मेरी,
देखि जब जिन्दगी से जंग तेरी,
तन पर मन पर मैल जमा
अन्धयारी नगरी में जैसे बिन दिए तू अकेला खड़ा,
किलकारी निकली जब माँ के दुलारे की,
तो मेरा जमीर भी रो पड़ा ::

:: के कभी प्यास बुझी नहीं जिन आँखों की,
जिन्होंने अभी से तिरना सिख लिया,
क्यों जिन्दगी में आये क्या मिला और क्या पाए,
किस्मत ऐसी की बंज़र जमीं पर सुखा पैड खड़ा ::

:: फिर देखा उगता सूरज होंसला मेरा भी बुलंद हुआ,
सूरज से आँखे मिलाकर कुछ निश्चय मैंने भी किया,
की जब तक जीत न जाऊं नहीं हटेगा पीछे पग ये मेरा,
कल की खबर न जानो आज जिन्दगी को पहचानो,
के सीर्स पर तो तू ही है खड़ा ::

अब जीत जाना ही मकसद है मेरा

जय हिंद जय भारत...

\\मैं एक हिन्दुस्तानी//

मैं एक हिन्दुस्तानी!
कर रहा फिर अपनी मनमानी!!

खड़ा चोराहे पे सोचता,
के कोन ये कुरीतियाँ बेचता
के कोन बहा रहा है नफरत के सैलाब,
के कोन कर रहा है इस चमन को बर्बाद,
के फिर है अजब सी मेरे मन में बेचैनी,

मैं एक हिन्दुस्तानी................

क्यों आज फिर अपनापन नज़र नहीं आता मुझे,
के हर तरफ ये कैसा शोर हो रहा है,
के सायद गन्दी महफ़िलो का विमोचन हर और हो रहा है,
के अब जीस्त के जीने के माँयने बदल चुके,
सायद मैंने जो देखा है वो आइने बदल चुके,
है अभी भी कुछ बातें अनजानी,

मैं एक हिन्दुस्तानी..................

बना रहे है देश आकृति वो
भूल चुके हैं अपनी संस्कृति जो,
के भूख खड़ी है हर दरवाजे पर,
गरीबी माथा चूमती छाजे पर,
बेच रहे है कुछ लोग अपने अभिमान को,
काट रहे है जात-पात में उस भगवान् को,
सनाटा लिए मौत खड़ी हर चौराहे पर,
के लिए बुलावा काल का आ जाये समसान को,
के लुट लिया सब, छुट लिया सब
के भूल गए अब सब बातें पुरानी.

मैं एक हिन्दुस्तानी...............

के राजनीति अब वर्चस्व आखाडा है,
मतलब और ढंग बदल चूका,
देश समाज अब मजहब मैं बट चूका,
देश हराओ कुर्शी जिताओ
ये नेताओ का नारा है,
मैं खड़ा यू सोचता करना क्या अब सबसे नयारा है,
मैं चाहता हूँ जो करना अडचने बहुत है आनी.

मैं एक हिन्दुस्तानी...................

अ खुद्दा तेरी इनायत हो हम पे,
दुआ मांगता मैं तुझसे ,
इसे फिर से वही भारत्वर्स नगरी बनाओ,
फिर से बाल रूप मैं इस धरती पर तुम आओ,
फिर कोई लीला कर इस चमन को फूलों से सजाओ,
बस इतनी आशा है दीदार तेरा हो जाए,
ये संसार तेरा हो जाये,
के चारो तरफ अमन और चैन हो,
के हर बुरे का अंत यहाँ हो जाए,
के ये सब कहते-२ “महेश” की आँखों मैं है पानी,
के भारत माँ की आन तुम्हे है बचानी..........


मैं एक हिन्दुस्तानी.....................

Wednesday, July 28, 2010

फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों

आज फिर कलम ने मुझे विस्वास दिया हैं,
कुछ जोड़कर कुछ तोड़कर
फिर अपने आपको खुदी में छोड़ कर
सारे ग़मों को लिख दिया है………….

नहीं है वक़्त आज आंधियो में रुक जाए कदम ,
नहीं है वक़्त आज के मंजिल से पीछे हट जाए कदम ,
लगी है बाजी अब के होंसले अब न होने देंगे कम ,
रुकना नहीं झुकना नहीं
फिर चाहे लहू की नदिया बहानी पडे ,
फिर चाहे सर कटाने पडे,
अब न पीछे हटेंगे कदम.
जब तक मंजिल को न पा जाए हम .

हर तरफ ग़मों का मंज़र जो छाया है,
गुल गुलाब न रहा के लाल बन आया है,
ग़मों का काफिला यू इस कदर बढ़ता चला गया ,
के मेरे वतन पे आज आँधियों का साया है……..

ज़र्रा ज़र्रा घिरा है आंधियो के बोज से ,
के हर तरफ मौत का तांडव छाया है,
हाल ये है बसर करना मुस्किल हुआ ,
के आज मेरा वतन आंसुओं में नहाया है……..

कही अंगारे बरसती आग है,कही तूफां घनेरे है,
कही लुट रही है संस्कृति, कही आंसुओं के मंज़र गहरे है,
कही होड़ है अपने आप का वर्चस्व बढ़ाने की,
लगी है आज बाजी देस अपना बाचंने की,
टूटे ही सपनो को आज सजाने की,
फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों ,
इसलिए अपने आपको एक बनाना है,
ज़रे-2 मैं अमन और चैन फैलाना है ,
अपनी मात्रभूमि को फिर आज अपना बनाना है…………………

प्यालो में मधुशाला

कभी दिल रंगी बहारो में,
कभी दिल रंगी पुहारो में,
कभी बहते पानी की कल कल से,
कभी गिरते झरनों की छल छल से,
कभी र्रून झुन -२ करती प्यालो में मधुशाला,
फिर वक़्त नहीं अब अपने आपको समझाने का,
के आज खूब झूमी है मदमस्त हाला..................

Tuesday, July 27, 2010

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ !

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ।

और फिर एक बे-अदब बे-सबब महफ़िल का दोर है
झुकी हुई है वादियाँ, समां भी कुछ और है
धडकने गुम है सांसे नम है
फिर कुछ अनकहा अनसुना सा मेरे मनं मैं है
फिर न आज मैं अपने बस मैं हूँ ॥

मैं जाने किस कशमकश मे हूँ ॥

मेरी धडकने कुछ इस तरह जल रही
के तनहाइयों के सिवा और कुछ नहीं
अब मेरी जिन्दगी
दूरियां इस कदर बढ़ रही,
के जैसे न मिले हो हम कभी
जर्रा-जर्रा तूफ़ान का रेला नज़र आने लगा है
तू पास होके मुझसे दूर जाने लगा है
के मैं आज फिर गैरों की महफ़िल मैं हूँ ॥
मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ॥ 

Monday, July 26, 2010

॥ अधूरी नज़्मे ॥

1)
मेरी नाकामी मुझ पे हस्ती और सहारे छुट गए.
अब मेरी ज़ीस्त के सब किनारे टूट गए,
हम जला के चिराग बाम पर बैठे रहे,
पर जलने वाले सब चिराग हमसे रूठ गए ||

2)
जो कभी ख़त्म ना हो
ये महफिलों के दोर यूहीं चलतें रहे
जीस्त जवानी और जान के फैंसले
फिर अपने लहू से धुलते रहे
हो गैर मुमकिन अगर जिन्दगी लुटानी पड़े
की गहराइयों के समुंदर फिर पलते रहे ||

3)
मेरी मौत पे रोये वो जो गैर हो
मुझे कंधा वो दे जिनसे बैर हो
सुकून मिलेगा मेरी रूह को,
वर्ना छोड़ देना मुझे उस जगह
जहाँ तनहाइयों का कहर हो ||

॥ मेरा भ्रम ॥

अपने साए की आहट से डर गया,
आज मैं फिर अपने आप की नज़रों में गिर गया॥

टुटा वहम मेरा सपनो से खेलता,
जैसे आज मैं अपने हाथो खुद ही मर गया॥

नहीं मुमकिन की वो हमें गैर न समझे,
के आज इस कदर पल भर में मंज़र बदल गया॥

जो भी लिखा था साए में उनके बैठ के,
जैसे के आज सब कुछ उनके साए में जल गया॥

क्यों करे मेरी वफाओं का ऐतबार वो,
करने लगे है मुझसे दरकिनार वो,
आज फिर दिल के कोने में धुआं भर गया॥ 

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी!
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी!!

कभी बचपन की अटखेलियाँ, कभी एक पल की जवानी,
कभी मध्यम होती साँसों की चुभन, कभी बुढ़ापे की निशानी,
कभी यादों का गहरा साया, फिर कभी अंधरे में अपने आपको पाया,
कभी करता मैय्खानो की सवारी, कभी फिर से रात अँधियारी
कभी मंदिर मस्जिद सिवाले जाना, फिर यह देख सबको होती हैरानी,

मेरे दर्द में लिपटी मेरे शब्दों की जुबानी,
मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ॥

कभी झूट कभी सच, कभी अपने आपको दिया उसमे रच,
कभी बारिस की बूंदे और वो बूंदों की महक,
कभी मेरे यार का मिलना, और उसकी बातें रूहानी,
यही है मेरी कविता यही मेरी कहानी ॥

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ,
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी ॥

कुछ सतब्ध कुछ निसब्द,
की जैसे बादलो में लिपटी, कुछ अनसुनी कुछ अनकही
हवाओ की तरह तेज, लताओं की तरह चंचल,
मेरे विस्वास में लिपटी, मेरी खामोस मधोस निशानी ॥

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ,
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी ॥ 

मैं देश बचाना चाहता हूँ,

मैं देश जगाना चाहता हूँ,
मैं देश बचाना चाहता हूँ,

राजगुरु सुखदेव भगतसिंह मिट गए वतन के लिए,
मैं उन सहिदों की याद में आंसू बहाना चाहता हूँ,
मैं आज बताना चाहता हूँ, मैं आज जताना चाहता हूँ,
मैं वीरों की याद में खुद को भुलाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ,........................

मैं मंदिर मस्जिद गुरद्वारे और चर्च मैं एक गीत दोहराना चाहता हूँ,
मैं आपस मैं भाई चारे का गीत सिखाना चाहता हूँ
मैं इश्वर अल्लाह वाहेगुरु इशु को एक रूप में दिखाना चाहता हूँ,
मैं जात पात भेद भाव में लिपटी संस्कृति को आज बचाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ..........................

पड़ गयी जो बेड़िया वक़्त से नन्हे पैरो में,
मैं उन नन्हे पैरो को जन्नत पे चलाना चाहता हूँ,
मैं अपने देश को जन्नत बनाना चाहता हूँ,
उन्नति के मार्ग पे चलकर हम जीते होंसले,
मैं अपने देश को उन्नत बनाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ..........................

बैर और द्वेष से मिट गए थे जो निशाँ,
आँधियों की सेज पे लुट गए थे जो जहां,
आज मैं उन वादियों में प्यार जगाना चाहता हूँ,
मैं देश बचाना चाहता हूँ.....................

भूल चुके हैं जो अपनी संस्कृति को,
वो याद दिलाना चाहता हूँ,
मैं फिर से गीता ज्ञान दोहराना चाहता हूँ,
नफरत की आंधी मैं झुलसी हुई,
इंसानियत को आज जगाना चाहता हूँ,
मैं एक इंसान को इंसान बनाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ................................