मैं एक हिन्दुस्तानी!
कर रहा फिर अपनी मनमानी!!
खड़ा चोराहे पे सोचता,
के कोन ये कुरीतियाँ बेचता
के कोन बहा रहा है नफरत के सैलाब,
के कोन कर रहा है इस चमन को बर्बाद,
के फिर है अजब सी मेरे मन में बेचैनी,
मैं एक हिन्दुस्तानी................
क्यों आज फिर अपनापन नज़र नहीं आता मुझे,
के हर तरफ ये कैसा शोर हो रहा है,
के सायद गन्दी महफ़िलो का विमोचन हर और हो रहा है,
के अब जीस्त के जीने के माँयने बदल चुके,
सायद मैंने जो देखा है वो आइने बदल चुके,
है अभी भी कुछ बातें अनजानी,
मैं एक हिन्दुस्तानी..................
बना रहे है देश आकृति वो
भूल चुके हैं अपनी संस्कृति जो,
के भूख खड़ी है हर दरवाजे पर,
गरीबी माथा चूमती छाजे पर,
बेच रहे है कुछ लोग अपने अभिमान को,
काट रहे है जात-पात में उस भगवान् को,
सनाटा लिए मौत खड़ी हर चौराहे पर,
के लिए बुलावा काल का आ जाये समसान को,
के लुट लिया सब, छुट लिया सब
के भूल गए अब सब बातें पुरानी.
मैं एक हिन्दुस्तानी...............
के राजनीति अब वर्चस्व आखाडा है,
मतलब और ढंग बदल चूका,
देश समाज अब मजहब मैं बट चूका,
देश हराओ कुर्शी जिताओ
ये नेताओ का नारा है,
मैं खड़ा यू सोचता करना क्या अब सबसे नयारा है,
मैं चाहता हूँ जो करना अडचने बहुत है आनी.
मैं एक हिन्दुस्तानी...................
अ खुद्दा तेरी इनायत हो हम पे,
दुआ मांगता मैं तुझसे ,
इसे फिर से वही भारत्वर्स नगरी बनाओ,
फिर से बाल रूप मैं इस धरती पर तुम आओ,
फिर कोई लीला कर इस चमन को फूलों से सजाओ,
बस इतनी आशा है दीदार तेरा हो जाए,
ये संसार तेरा हो जाये,
के चारो तरफ अमन और चैन हो,
के हर बुरे का अंत यहाँ हो जाए,
के ये सब कहते-२ “महेश” की आँखों मैं है पानी,
के भारत माँ की आन तुम्हे है बचानी..........
मैं एक हिन्दुस्तानी.....................
Ye mere dil ke bahut karib hai
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