अपने साए की आहट से डर गया,
आज मैं फिर अपने आप की नज़रों में गिर गया॥
टुटा वहम मेरा सपनो से खेलता,
जैसे आज मैं अपने हाथो खुद ही मर गया॥
नहीं मुमकिन की वो हमें गैर न समझे,
के आज इस कदर पल भर में मंज़र बदल गया॥
जो भी लिखा था साए में उनके बैठ के,
जैसे के आज सब कुछ उनके साए में जल गया॥
क्यों करे मेरी वफाओं का ऐतबार वो,
करने लगे है मुझसे दरकिनार वो,
आज फिर दिल के कोने में धुआं भर गया॥
आज मैं फिर अपने आप की नज़रों में गिर गया॥
टुटा वहम मेरा सपनो से खेलता,
जैसे आज मैं अपने हाथो खुद ही मर गया॥
नहीं मुमकिन की वो हमें गैर न समझे,
के आज इस कदर पल भर में मंज़र बदल गया॥
जो भी लिखा था साए में उनके बैठ के,
जैसे के आज सब कुछ उनके साए में जल गया॥
क्यों करे मेरी वफाओं का ऐतबार वो,
करने लगे है मुझसे दरकिनार वो,
आज फिर दिल के कोने में धुआं भर गया॥
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