Friday, January 31, 2014

यार बदल देंगे

तेरी बात,
उसकी क्या औकात,
और अपने हालात,
   यार बदल देंगे ॥

उसकी सुरुवात,
उनकी क्या मुलाक़ात,
और अपने जज़बात,
    यार बदल देंगे ॥

उसका हाथ,
गैरो का साथ,
गिरते हुए दाँत,
    यार बदल देंगे ॥

आधी सी रात,
गिरती बरसात,
जुगनुओ का साथ,
    यार बदल देंगे ॥

सोचने की बात,
कलम है हाथ,
“महेश” लिखने का अंदाज़,

          यार बदल देंगे ॥ 

Tuesday, January 28, 2014

॥ बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

बिन बेटी संसार अधूरा है,
बेटी है तो घर पूरा है॥

बेटी आंखो की ज्योति है,
शक्तिसवरुपा है सपनों की अंतर्ज्योति है,
मेरा खुद का नया रूप है,
मेरे आँगन मे खिली धूप है,
बेटी है तो जीवन मेरा है॥

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

बेटी से घर मे चहचाहट है,
बेटी है तो सच्ची मुस्कुराहट है,
बेटी से घर मे स्मृधी है,
बेटी से घर मे वृद्धि है,
बेटी है तो जीवन खुशियो का डेरा है॥

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

बेटी घर का सम्मान है,
बेटी है तो आदर है मान है,
मेरे दिल का एहसास है बेटी,
मेरी संवेदना मेरा विश्वास है बेटी,
मेरे लिए सबसे खास है,
बेटी नहीं तो चारो तरफ अंधेरा है,
बेटी है तो घर आँगन उजेरा है॥

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

आंखो मे उजियारा समेटे एक भोर है बेटी,
बिखेरती उजियारा चहुऔर है बेटी,
बेटी खिलखिलाए तो पूरा आँगन चहकता है,
रजनीगंधा सी खुसबू सा सारा घर महकता है,
बेटी मेरा गुरूर है, मेरा अहम है,
मेरे जीवन जीने का करम है,
बेटी है तो हर क्षण ठंडी हवा का फेरा है॥

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

भाई का दुलार है बेटी,
माँ का प्यार है बेटी,
पिता का सम्पूर्ण संसार है बेटी,
घर मे है तो हर दिन त्योहार है बेटी,
बेटी है तो हर दिन सवेरा है,
वरना हर तरफ धुआँ है अंधेरा है,

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥

बेटी दुआ है पावन कथा है,
बेटी ज़ीनत है सुभकामना है,
ग्रंथ है बेटी रचना है भगवान है वंदना है,
त्याग है बेटी क्षमा है,
शाहस की गौरव कथा है,
बेटी हर्षित व्यथा है,
अगर बेटी है तो महेश” सबकुछ तेरा है,

बिन बेटी संसार अधूरा है ॥
  

Saturday, January 25, 2014

॥ शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना छोड़ दिया ॥

शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना छोड़ दिया,
हमने गैरो से दिल लगाना छोड़ दिया॥

पी गया हर दर्द सी गया सारे जख्म,
के जख्मो पे मरहम लगाना छोड़ दिया॥

लेता नहीं हिसाब अब उनसे मुहब्बत मे,
के अब सब खाता-ए-इश्क़ बनाना छोड़ दिया॥

वो गली जहां जमती थी ख़ुशनुमा महफिले,
उस गली अब हमने जाना छोड़ दिया॥


कभी हमे अहतराम था उनपे दिल्लगी थी बहुत,
के अब उनसे दिल लगाना छोड़ दिया॥

कब तक पीता घुट-घुट के गमों का जहर,
के हमने अब ताबिश-ए-पैमाना छोड़ दिया॥

उस शाम खून उबलता रहा बहुत देर तक,
बस बहुत हुआ,
अब खून रगों मे जमाना छोड़ दिया॥

जो भी रिश्ता मिला नाओनोश मे मिला महेश,
के अब हमने बादा-ए-जाम उठाना छोड़ दिया॥ 

Friday, January 24, 2014

॥ मेरी आँख के उजाले जाने कहाँ गए ॥

मेरी आँख के उजाले जाने कहाँ गए,
थे कुछ मतवाले लोग जाने कहाँ गए ॥

घने अब्र की छाँव मिली बस,
दिन के सूरज के उजाले जाने कहाँ गए ॥

सुख गए मेरी नज़रों के समुंदर,
आब-ए-तल्ख बरसाने वाले जाने कहाँ गए ॥

अजनबी शहर भर को लगे हम,
दिलों से कांटे मगर निकाले कहाँ गए ॥

गम और दर्द से वास्ता रहा दर-बदर,
खुशियो के सिवाले जाने कहाँ गए ॥

जब देखा हमने देखा टूटा आईना,
शब-ए-आईना दिखाने वाले जाने कहाँ गए ॥

अक्सर चुपचाप रहती है सब महफिले,
आवाजाह करने वाले आश्ना जाने कहाँ गए ॥

ये किसने चश्मे-ए-अत्फ़ से देखा “महेश”,
पलट के देख क़ल्ब-ए-ताबिश जाने कहाँ गए ॥ 

Tuesday, January 21, 2014

॥ दिल-ए-नादाँ ॥

उनको यू करीब आना नहीं था,
शायद प्यार को आजमाना सही था॥

उसने न पूछा न हमने बताया,
जिक्र करने का कोई बहाना नहीं था॥

बिस्तर पे खुसबू थी ठंडी सबा थी,
आँखें खुली तो वीराना यहीं था॥

आँचल पे उसके न कोई दाग आए,
इसलिए दामन उनका बचाना सही था॥

मुहब्बत मे हमने बेवफ़ाई है पाई,
फिर भी यू आँसू हमको बहाना नहीं था॥

वफा कैसे मिलती महेश तुझको,
जब लकीरों मे ये खजाना नहीं था॥ 

Friday, January 17, 2014

॥ गम-ए-जिन्दगी॥

डर लगता है हमे खामोश ही रहने दो,
दिल के दर्द सारे गम घुट-घुट के सहने दो॥

जीस्त के सारे कच्चे धागे तोड़ दो सब,             
गम-ए-जिन्दगी मे बाकी न कुछ रहने दो॥

गलियो मे शोर है रहेगा हमारा,                          
हमें चीखते-तड़पते चुपचाप ही रहने दो॥

अरे बर्बाद (बदनाम) होना था तो हुए,                  
के अब मेरे बर्बादीयों के किस्से सरे आम होने दो॥

गिरते हुए अब संभलना नहीं हमे,                
तन्हाइयों के बादल मेरी परछाइयो मे रहने दो॥

रोको न अब हमें हद से गुज़र जाने दो,
तोड़ दो सब किनारे आँसुओ को यूही बहने दो॥

के “महेश” अब हमे जीना नहीं,
छोड़ के सब कब्र मे सोने दो॥ 

Tuesday, January 14, 2014

॥मैं जब भी देखता हूँ उसको, नजरे थम सी जाती है॥ श्रृंगार रस

मैं जब भी देखता हूँ उसको, नजरे थम सी जाती है,
हो मोहिनी या परी कोई मन को कितना बहकाती है,
यौवन का अल्ल्ड्पन चलती है, इतराती है,
जैसे हो नदी कोई लहरों सी बल खाती है॥

उसकी नाज़ूक सी गौरी बाहें,
फिर छूने को मन चाहे,
कदम उसकी और बढ़ चले,
जाने क्यू आज रोके ये न रुके,
मृगनयनी, चंचल, चितवन मे जैसे वो शरमाती है॥
मैं जब भी देखता हूँ उसको.........

सर से पाँव तलक सुन्दरता,
मन मे मिलने की व्याकुलता,
देख रहा हु उसको पाने को,
जी आज मेरा नहीं भरता,
डूबने को जी चाहता है जब केश घटाए लहराती है॥
मैं जब भी देखता हूँ उसको.........

उसके होंटो की ये लाली,
काजल सी आंखे काली-काली,
जिसके आगे हो बादल फीके,
नभ रोशनी करदे इतने नीके,
दाँत जड़े हो हीरे जैसे जब वो धीरे से मुस्काती है॥
मैं जब भी देखता हूँ उसको.........

होठों का यूं मिलना,
इंद्र्धनुष का हो जैसे खिलना,
गुलाबी पंखुड़िया हो जैसे,
महक रही हो खुद ही वैसे,
लगती है कोयल की बोली, स्वर मे धीमे से जब वो गाती है॥
मैं जब भी देखता हूँ उसको.........

पैरो मे पायल और बिछुओं का संगम,
आंखो मे सपने माथे पे कुम-कुम,
भूल गया ये देख अपना गम,
घुँगरू की मोहक सी ये धुन,
करने लगा नृत्य सुन ये रून-झुन,
सुध-बुध खो देता हु, पैरो को जब वो थिरकाती है॥
मैं जब भी देखता हूँ उसको.........

अधरो की लाली रखी हो जैसे नथुनो पर,
सुबह होने वाली हो जैसे एक क्षण पर,
जैसे लहर टकराए कांटो के तट पर,
अब कैसे ठहरे महेश सब्र बाँधकर,
खो जाने को दिल करता है, जब भी वो पलके झपकाती है॥
लगता है “ऋतु” आ गयी, प्यार की बुँदे जब वो बरसाती है॥

मैं जब भी देखता हूँ उसको.........