Monday, July 7, 2014

॥ मैं रहूँ या ना रहूँ ॥

मैं रहूँ या ना रहूँ, मेरा निशां रह जाएगा,
पेड़ पे गर एक भी, पत्ता हरा रह जाएगा ॥

लिख रहा हूँ कुछ नई संवेद्नाए यहाँ,
पढ़ने का एक अजब सा सिलसिला रह जाएगा ॥

अपने शब्दों को न दे सियाशत की जुबां अ बेअदब,
वरना हर एक शब्द काँटा सा गड़ा रह जाएगा ॥

मैं भी लहरों सा मच्लू मगर दरिया मेरी मंज़िल नहीं,
मैं भी दरिया हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा ॥

कल यूही फैल जाएगा “महेश” सबऔर खुसबू की तरह,
सबा संग ले जाएगी अपने, जग ढूँढता रह जाएगा ॥ 
                          "महेश मुकदम"

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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