मुझे थोड़ा इस वक्त को समझाने दे,
सोदा किया है तक़दीर से मैंने,
जरा थोड़ा तक़दीर से बैठ के बतलाने दे ॥
गर्दिश के हजारो रंग देखे
है मैंने
यूही शायद बहारों का रंग
भूल गया ॥
जब भी देखे खंडर ही देखे है
मैंने
इसीलिए बुलंद मीनारों का
रंग भूल गया ॥
हवा उड़ा के ले गयी बहुत दूर तलक,
तमाम सफर के बाद कहाँ जाना है भूल गया ॥
खूब रोशनी थी शाकी तेरे मैखाने मे,
फिर भी बनते हुए जाम उठाना भूल गया ॥
वो सितम की राह बनाते चले हर कदम,
मैं उन राहो मे बहाना बनाना भूल गया ॥
लोग अक्सर अपने दामन पे दाग छुपा लेते है,
मैं अपने दामन के दाग छुपाना भूल गया ॥
जब भी पाया खुद को छोटा(तुच्छ) पाया मैंने,
इसीलिए “महेश” अपना
कद(वर्चस्व) बढ़ाना भूल गया ॥
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