Wednesday, May 7, 2014

॥ गर्दिश के हजारो रंग देखे है मैंने ॥

गर्दिश के ये पल बीत जाने दे,
मुझे थोड़ा इस वक्त को समझाने दे,
सोदा किया है तक़दीर से मैंने,
जरा थोड़ा तक़दीर से बैठ के बतलाने दे ॥

गर्दिश के हजारो रंग देखे है मैंने
यूही शायद बहारों का रंग भूल गया ॥

जब भी देखे खंडर ही देखे है मैंने
इसीलिए बुलंद मीनारों का रंग भूल गया ॥

हवा उड़ा के ले गयी बहुत दूर तलक,
तमाम सफर के बाद कहाँ जाना है भूल गया ॥

खूब रोशनी थी शाकी तेरे मैखाने मे,
फिर भी बनते हुए जाम उठाना भूल गया ॥

वो सितम की राह बनाते चले हर कदम,
मैं उन राहो मे बहाना बनाना भूल गया ॥

लोग अक्सर अपने दामन पे दाग छुपा लेते है,
मैं अपने दामन के दाग छुपाना भूल गया ॥

जब भी पाया खुद को छोटा(तुच्छ) पाया मैंने,
इसीलिए महेश अपना कद(वर्चस्व) बढ़ाना भूल गया ॥




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