हम किसी की बात का अक्सर गिला करते नहीं,
लोग ही कुछ इस तरह के हैं हया करते नहीं!
खुद नहीं आता किसी के साथ मिलकर बैठना,
और फिर लोगो से कहते वो वफा करते नहीं!
ओ मुसाफिर! गिर गया तो क्या हुआ उठ फिर संभल,
इस कदर मंजिल के दीवाने गिरा करते नहीं!
वो बसर डरते ही रहेंगे अपनी ही परछाई से,
जो कभी दो चार मुस्किल से हुआ करते नहीं!
शौक जिनके दिल में हैं, खुद भी तो एक मंजिल हैं वो,
वो किसी की रहा का कांटा बना करते नहीं!
दोस्तों को नाज़ क्यों न हो "महेश" की दोस्ती पर,
हम तो अपने दुसमन का भी बुरा करते नहीं!!
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