Wednesday, September 8, 2010

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे,
बाते हुई चर्चे हुये फिर हर गली में बदनाम हम होने लगे,
सायद जमाने वालो को नागवार गुजरी ये बाते,
के आज वक़्त ये है, हम जुदा है,
के बस यादों के गहरे साए में अपने आप को छुपाने लगे,

के सायद मेरी दीवानगी में कुछ गम छुपे थे,
जो की अब रह-रह के मेरी आँखों से बहने लगे,

लहरों की तरह चंचल मैं उन्मुक्त हवाओ से किनारे दर किनारे चलता रहा,
गलत मेरा विस्वास हुआ किनारे भी अब टूटने लगे,सहारे भी अब छुटने लगे,

के मैं अपनी अक्लमंदी पर विचारो पर भरोसा करता रहा,
के मेरे विचार भी अब मैखाने में दम तोडने लगे,

मुझे विस्वास था उस दुनिया के मालिक पर,
के वक़्त दर वक़्त उस पर से भी विस्वास टूटने लगे,

मुझे गम नहीं की मौत ही मेरी मंजिल सही,
के बस अब तो उनकी यादों में ये सांस भी छुटने लगे,
के अब 'महेश' तेरी जीस्त के सब किनारे टूटने लगे!!

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