Friday, July 30, 2010

मेरा दर्द मेरी उड़ान

:::::नम आँखों को लिए दिल को मैंने यू समझाया,
के हाथ में आई कलम और कुछ लिखने का ख़याल आया:::::

:: नम हो आई आँखे मेरी,
देखि जब जिन्दगी से जंग तेरी,
तन पर मन पर मैल जमा
अन्धयारी नगरी में जैसे बिन दिए तू अकेला खड़ा,
किलकारी निकली जब माँ के दुलारे की,
तो मेरा जमीर भी रो पड़ा ::

:: के कभी प्यास बुझी नहीं जिन आँखों की,
जिन्होंने अभी से तिरना सिख लिया,
क्यों जिन्दगी में आये क्या मिला और क्या पाए,
किस्मत ऐसी की बंज़र जमीं पर सुखा पैड खड़ा ::

:: फिर देखा उगता सूरज होंसला मेरा भी बुलंद हुआ,
सूरज से आँखे मिलाकर कुछ निश्चय मैंने भी किया,
की जब तक जीत न जाऊं नहीं हटेगा पीछे पग ये मेरा,
कल की खबर न जानो आज जिन्दगी को पहचानो,
के सीर्स पर तो तू ही है खड़ा ::

अब जीत जाना ही मकसद है मेरा

जय हिंद जय भारत...

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