Wednesday, July 28, 2010

फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों

आज फिर कलम ने मुझे विस्वास दिया हैं,
कुछ जोड़कर कुछ तोड़कर
फिर अपने आपको खुदी में छोड़ कर
सारे ग़मों को लिख दिया है………….

नहीं है वक़्त आज आंधियो में रुक जाए कदम ,
नहीं है वक़्त आज के मंजिल से पीछे हट जाए कदम ,
लगी है बाजी अब के होंसले अब न होने देंगे कम ,
रुकना नहीं झुकना नहीं
फिर चाहे लहू की नदिया बहानी पडे ,
फिर चाहे सर कटाने पडे,
अब न पीछे हटेंगे कदम.
जब तक मंजिल को न पा जाए हम .

हर तरफ ग़मों का मंज़र जो छाया है,
गुल गुलाब न रहा के लाल बन आया है,
ग़मों का काफिला यू इस कदर बढ़ता चला गया ,
के मेरे वतन पे आज आँधियों का साया है……..

ज़र्रा ज़र्रा घिरा है आंधियो के बोज से ,
के हर तरफ मौत का तांडव छाया है,
हाल ये है बसर करना मुस्किल हुआ ,
के आज मेरा वतन आंसुओं में नहाया है……..

कही अंगारे बरसती आग है,कही तूफां घनेरे है,
कही लुट रही है संस्कृति, कही आंसुओं के मंज़र गहरे है,
कही होड़ है अपने आप का वर्चस्व बढ़ाने की,
लगी है आज बाजी देस अपना बाचंने की,
टूटे ही सपनो को आज सजाने की,
फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों ,
इसलिए अपने आपको एक बनाना है,
ज़रे-2 मैं अमन और चैन फैलाना है ,
अपनी मात्रभूमि को फिर आज अपना बनाना है…………………

No comments:

Post a Comment