Tuesday, July 27, 2010

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ !

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ।

और फिर एक बे-अदब बे-सबब महफ़िल का दोर है
झुकी हुई है वादियाँ, समां भी कुछ और है
धडकने गुम है सांसे नम है
फिर कुछ अनकहा अनसुना सा मेरे मनं मैं है
फिर न आज मैं अपने बस मैं हूँ ॥

मैं जाने किस कशमकश मे हूँ ॥

मेरी धडकने कुछ इस तरह जल रही
के तनहाइयों के सिवा और कुछ नहीं
अब मेरी जिन्दगी
दूरियां इस कदर बढ़ रही,
के जैसे न मिले हो हम कभी
जर्रा-जर्रा तूफ़ान का रेला नज़र आने लगा है
तू पास होके मुझसे दूर जाने लगा है
के मैं आज फिर गैरों की महफ़िल मैं हूँ ॥
मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ॥ 

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