Saturday, January 25, 2014

॥ शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना छोड़ दिया ॥

शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना छोड़ दिया,
हमने गैरो से दिल लगाना छोड़ दिया॥

पी गया हर दर्द सी गया सारे जख्म,
के जख्मो पे मरहम लगाना छोड़ दिया॥

लेता नहीं हिसाब अब उनसे मुहब्बत मे,
के अब सब खाता-ए-इश्क़ बनाना छोड़ दिया॥

वो गली जहां जमती थी ख़ुशनुमा महफिले,
उस गली अब हमने जाना छोड़ दिया॥


कभी हमे अहतराम था उनपे दिल्लगी थी बहुत,
के अब उनसे दिल लगाना छोड़ दिया॥

कब तक पीता घुट-घुट के गमों का जहर,
के हमने अब ताबिश-ए-पैमाना छोड़ दिया॥

उस शाम खून उबलता रहा बहुत देर तक,
बस बहुत हुआ,
अब खून रगों मे जमाना छोड़ दिया॥

जो भी रिश्ता मिला नाओनोश मे मिला महेश,
के अब हमने बादा-ए-जाम उठाना छोड़ दिया॥ 

2 comments:

  1. Kon kehta hai ki gammo ke zehar pee
    kon kehta hai k nafrato ko gale lga k zee
    Bekar ki bate hai dil aur dilaaagi
    ab kise aur k andaaz se zindagi ko tu zeee
    zindagi ko tu zee...

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  2. Thanks dear Ritu ..very nice comment.. Will follow

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