थे कुछ मतवाले लोग जाने कहाँ
गए ॥
घने अब्र की छाँव मिली बस,
दिन के सूरज के उजाले जाने कहाँ गए ॥
सुख गए मेरी नज़रों के समुंदर,
आब-ए-तल्ख बरसाने वाले जाने कहाँ गए ॥
अजनबी शहर भर को लगे हम,
दिलों से कांटे मगर निकाले कहाँ गए ॥
गम और दर्द से वास्ता रहा दर-बदर,
खुशियो के सिवाले जाने कहाँ गए ॥
जब देखा हमने देखा टूटा आईना,
शब-ए-आईना दिखाने वाले जाने कहाँ गए ॥
अक्सर चुपचाप रहती है सब महफिले,
आवाजाह करने वाले आश्ना जाने कहाँ गए ॥
ये किसने चश्मे-ए-अत्फ़ से देखा “महेश”,
पलट के देख क़ल्ब-ए-ताबिश जाने कहाँ गए ॥
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