Friday, February 14, 2014
Monday, February 3, 2014
॥ मेरा दोस्त ......मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
या भगवान लिखू,
जो
भी लिखू अ दोस्त,
सबसे पहले तुझे अपनी जान लिखू ॥
तुम मेरा विश्वास हो दिल के पास हो,
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
सबसे पहले तुम्हारा नाम आता है,
शायद पिछले जन्मो का नाता है,
रब ने तुमसे मिलाया है,
ज़िंदगी
जीना सिखाया है,
तुम मेरी हकीकत हो मेरा विश्वाश हो,
मेरा जुनून हो मेरी धड़कन मेरी शांश
हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
वो वक़्त मैं कैसे भुला दु,
ऐसे जीना जाने किस-किस को सीखा दु,
तुम्हारी हर आदत दीवाना बनाती है मुझे,
जब भी मायूष होता हु जीना सिखाती है
मुझे,
ज़िंदगी खफा है रहे,
बस अब
तुम ही जीने का अंदाज हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
धोके तुमने भी खाये है मैंने भी,
आँसू तुमने भी बहाये है मैंने भी,
बदल देंगे तकदीर को,
तोड़ देंगे हर कच्ची तस्वीर को,
अब रोना नहीं हमे खुल के जीना है,
ये भी दोस्त एक जीने का आगाज हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
तुमने भी अपनी दोस्ती खूब निभाई है,
मेरी ज़िंदगी मे अपनी कलम चलाई है,
गर्द लिख रहा था हर वक्त मैं,
फिर सुनहरे शब्दो की क्या झड़ी लगाई
है,
अब जीस्त के हर पन्ने मे तुम बदहवाश
हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
तेरे बिना जीना बेमानी है,
अगर तुम न हो तो ज़िंदगी सिर्फ जलानी
है,
तेरे लिए हर वक़्त दिल जलता है,
हर वक्त तुमसे उलझने को दिल करता है,
के बस अब तुम हो तो मैं हूँ,
वरना
ज़िंदगी बर्बाद हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
तुम वो अहसाह हो जो कभी मिटता नहीं,
तुम वो पर्वत हो जो कभी झुकता नहीं,
कोई क्या कीमत बताएगा तुम्हारी,
तुम वो मोती हो जो कभी बिकता नही,
के तुम हर दर्द मे मेरा मुक्क्दर हो
मेरे पास हो ॥
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
सच्चा दोस्त है मेरा आजमा के देखे कोई,
करे यकीन उसपे पास आके देखे कोई,
ये वो सोना जो रंग बदलता नही कभी,
जितना चाहो आग मे जला के देखे कोई,
बस अब नम है आंखे साँसे है मध्यम,
नम आंखो से लिखते-२ “महेश”
मेरा दोस्त, भाई ” मेरे पास हो ॥
तुम मेरा विश्वास हो दिल के पास हो,
मैं कुछ भी नहीं तुम सबसे खास हो ॥
Saturday, February 1, 2014
॥ वो यू गए जैसे शब्दो के नाम ॥
वो
यू गए जैसे शब्दो के नाम,
आँखों
मे छोड़ गए एक शाम,
एक
तन्हा भीगी शाम ॥
वफा के सारे लेखापत्र फट गए,
दीवानगी के सारे रंग सूरज की किरणों
से छट गए,
धडकनों को अब कैसे मिले आराम ॥
वो
यू गए जैसे........
कटीले शूल है अब राहों मे,
के चुभ रहे है हर “गाम” मेरे पाओं मे,
के हो गए हम फिर से बदनाम ॥
वो
यू गए जैसे........
हवाओं ने अपना रुख मोड दिया,
हर डगर ने पीछे छोड़ दिया,
गगन भी समेट ले गया आँचल मे अपने शाम
॥
वो
यू गए जैसे........
हर रात तेरी याद मे मचलती रही,
शमा हर “बाम” पे जलती रही,
मगर फिर भी “महेश” तू हो गया नाकाम
॥
वो
यू गए जैसे शब्दो के नाम,
आँखों
मे छोड़ गए एक शाम,
एक
तन्हा भीगी शाम ॥
गाम – कदम
बाम – छज्जा
Friday, January 31, 2014
Tuesday, January 28, 2014
॥ बिन बेटी संसार अधूरा है ॥
बिन
बेटी संसार अधूरा है,
बेटी
है तो घर पूरा है॥
बेटी
आंखो की ज्योति है,
शक्तिसवरुपा
है सपनों की अंतर्ज्योति है,
मेरा खुद का नया रूप है,
मेरे आँगन मे खिली धूप है,
बेटी
है तो जीवन मेरा है॥
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
बेटी से घर मे चहचाहट है,
बेटी है तो सच्ची मुस्कुराहट है,
बेटी से घर मे स्मृधी है,
बेटी से घर मे वृद्धि है,
बेटी है तो जीवन खुशियो का डेरा है॥
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
बेटी घर का सम्मान है,
बेटी है तो आदर है मान है,
मेरे दिल का एहसास है बेटी,
मेरी संवेदना मेरा विश्वास है बेटी,
मेरे लिए सबसे खास है,
बेटी नहीं तो चारो तरफ अंधेरा है,
बेटी है तो घर आँगन उजेरा है॥
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
आंखो मे उजियारा समेटे एक भोर है बेटी,
बिखेरती उजियारा चहुऔर है बेटी,
बेटी खिलखिलाए तो पूरा आँगन चहकता है,
रजनीगंधा सी खुसबू सा सारा घर महकता
है,
बेटी मेरा गुरूर है, मेरा अहम है,
मेरे जीवन जीने का करम है,
बेटी है तो हर क्षण ठंडी हवा का फेरा
है॥
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
भाई का दुलार है बेटी,
माँ का प्यार है बेटी,
पिता का सम्पूर्ण संसार है बेटी,
घर मे है तो हर दिन त्योहार है बेटी,
बेटी है तो हर दिन सवेरा है,
वरना हर तरफ धुआँ है अंधेरा है,
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
बेटी दुआ है पावन कथा है,
बेटी ज़ीनत है सुभकामना है,
ग्रंथ है बेटी रचना है भगवान है वंदना
है,
त्याग है बेटी क्षमा है,
शाहस की गौरव कथा है,
बेटी हर्षित व्यथा है,
अगर बेटी है तो “महेश” सबकुछ तेरा है,
बिन
बेटी संसार अधूरा है ॥
Saturday, January 25, 2014
॥ शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना छोड़ दिया ॥
शब-ए-इश्क़ मे आँसू बहाना
छोड़ दिया,
हमने गैरो से दिल लगाना छोड़ दिया॥
पी गया हर दर्द सी गया सारे जख्म,
के जख्मो पे मरहम लगाना छोड़ दिया॥
लेता नहीं हिसाब अब उनसे मुहब्बत मे,
के अब सब खाता-ए-इश्क़ बनाना छोड़ दिया॥
वो गली जहां जमती थी ख़ुशनुमा महफिले,
उस गली अब हमने जाना छोड़ दिया॥
कभी हमे अहतराम था उनपे दिल्लगी थी बहुत,
के अब उनसे दिल लगाना छोड़ दिया॥
कब तक पीता घुट-घुट के गमों का जहर,
के हमने अब ताबिश-ए-पैमाना छोड़ दिया॥
उस शाम खून उबलता रहा बहुत देर तक,
बस बहुत हुआ,
अब खून रगों मे जमाना छोड़ दिया॥
जो भी रिश्ता मिला नाओनोश मे मिला “महेश”,
के अब हमने बादा-ए-जाम उठाना छोड़ दिया॥
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