Thursday, April 28, 2011

||जिन्दगी तेरे सवालो से खुद को मुकरते देखा||

एक बूँद मैय्सर के लिए खुद को भटकते देखा,
जिन्दगी तेरे सवालो से खुद को मुकरते देखा||

सुबह ‘सबा’ लाई थी नजराने कई,
पर एक धुल के झकोरे से खुद को बचते देखा||

शाम ढली और उठ चले कदम "मैयखाना ए पथ" पर,
आँख मिची-आँख खुली कुछ देर रुक-रुक कर,
फिर हमने ग़मों में खुद को पिघलते देखा||

गर इजाजत दे जमाना तो पीलू जी भर के,
यूँही जी लू जी भर के,
कल क्या पता हमने गुलसन जो खुद का उजड़ते देखा||

जब कभी "गम ए यार" से फुर्सत मिली हमें,
लिखी कोई गजल,
और फिर कागज- कलम पे खुद को उतरते देखा||

आँख से झर-झर गिरने लगे आँसू,
हमने जब खिलता हुआ बाग़ खुद का उजड़ते देखा||

एक बस उनसे दिल की बात सुनने की ख्वाहिस थी,
ये क्या हुआ उस पर भी रिश्तों को बिगड़ते देखा||

रात भर पहलु नशीं हो ये मुमकिन नहीं "महेश",
के जब सुबह को सांझ से खुद के लिए लड़ते देखा||

मैय्सर - सराब
सबा- ठंडी हवा

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