Thursday, April 7, 2011

||कह दो देश के सब गद्दारों से||

कह दो देश के सब गद्दारों से|
इन देश के भ्रस्ट साहूकारों से||
मात्रभूमि को जो बेच (लूट) रहे|
सत्ताधारी बाजारों में||

के अब निकली है चिंगारी,
फिर आई लहू बहाने की बारी,
के अब डगमग-डगमग दिग्गज डोलेंगे,
वो अपना भेद अपने मुख से खोलेंगे,
के पृष्ठ भूमि के पन्नो पर उनको हम तोलेंगे,
जो खड़े हुए है अकड़-अकड़ गलियारों में||

कह दो देश के.....

के सहरे वतन बाँध कर निकले है,
सर कफ़न बाँध कर निकले है,
मात्रभूमि को बचायेंगे ये वचन बाँध कर निकले है,
देश आन की खातिर हम चमन बाँध कर निकले है,
दीमक लगने न देंगे हम अपनी संस्कृति के व्यवहारों में||

कह दो देश के .....

समय बदलाव का है ये होना बहुत जरूरी है,
देश की खातिर एक होना बहुत जरूरी है,
रास्ट्र स्वाभिमान-सम्मान की खातिर,
भाई चारे का बिज बोना बहुत जरूरी है,
के “महेश” अब मिटा देंगे नफरतो को अपने बंधन अधिकारों से||

कह दो देश के.....

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