Monday, December 20, 2010

एक और कदम

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर,
तो करता समाज के कोरवो का वध हर छण पर,
मैं ना देखता मोह ममता की दिवार,
मैं सिर्फ करता देश के ध्र्त्रास्टो पर तीक्षण वार ॥

के अब तो हर महा सभा द्रोपती चिर हरण की कहानी घडती है,
इस अबला नारी पर जाने कैसे-कैसे कसीदे कसती है,
अब एक नहीं बहुत से ध्र्त्रास्टो ने गद्दी थामी है,
और इस लुटती संस्कृति को देख सारी सभा अनजानी है,
ये देख लगी है आग मेरे सिने में,
सुलगे है कई मोन समुन्द्र दिल कोने में,
के अब मुझे विस्वास नहीं इन सिखंडीयो की बस्ती पर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥

हर गली हर नुक्कड़ पर हवस के कीचक बैठे है,
इस नारी की लाज बचाने को कोई भीम सा बलवान नहीं,
जी करता है तान बजा दू व्र्हंला बनकर सत्ताधारी बाजारों में,
आग लगा दू लोकतंत्र के गलियारों में,
अब अंत कहा रह जाएगा इन राक्षसों का इस धर पर,
के अब फिर लड़ेंगे कोरव पांडव कुरुक्षेत्र के रण पर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥

के कुछ सरारती तत्वों ने इस समाज को गन्दा बनाया है,
हर जगह,हर घर में डर का मातम छाया है,
के हर हद पार कर इन गुंडों ने कहर बरपाया है,
ये सब देख मैंने अपने जिगर को थाम लिया,
के प्रण-प्रत्य ये विस्वास मेरा अब डग-मग होने न पायेगा,
अब जियेंगे वो गुंडे भी इस धर पर डर-डर कर,
हर मोल चुकायेंगे "महेश" वो अपने लहू से मर-मर कर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥ 

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