Thursday, January 6, 2011

//ये बरस भी अब बीत गया//

ये बरस भी अब बीत गया,
मेरे मन को हरा,
समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥

खुशिया भी थी दरवाजे पर,
ग़मों ने भी दस्तक दी छाजे पर,
खुशियों को हरा,
गम फिर से जीत गया ॥

ये बरस भी अब बीत गया ॥

उनसे बातें भी दो चार हुई,
फिर मुलाकाते भी कई बार हुई,
बातो और मुलाकातों में,
बन वो मेरा मीत गया ॥

ये बरस भी अब बीत गया ॥

कुछ ख्याल, कुछ बातें,
 मैंने मन को अपने समझाया,
गली समाज मोहल्लो में देखा मातम,
फिर रोना मुझको भी आया,
हंसी-खुशी वादियों का, गीत मैंने फिर दोहराया,
के अब धीरे-धीरे मेरी आँखों से बह कर मेरा गीत गया ॥

ये बरस भी अब बीत गया ॥

फिर हक से हाथ बढाया मैंने, दोस्ती अपनी समझाने को,
खुद झूका और सर झुकाया मैंने, अपनी प्रीत जताने को,
विस्वास किया गैरो पर, और अपना समझा ज़माने को,
गलत मेरा विस्वास हुआ, के जमाना अब भूल मेरी प्रीत गया
के "महेश" जमाना फिर से जीत गया ॥

ये बरस भी अब बीत गया,
मेरे मन को हरा, समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥

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