Sunday, September 12, 2010

मैंने कभी सोचा नहीं

मैंने कभी सोचा नहीं, के ये दोर भी आयेंगे,
के बदनाम होंगे बददुआये मिलेंगी,
और सिर्फ मेरी झोली में कांटे नज़र आएँगे !!

मैंने तो चाहा था फूलों सा चमन,
नसीबा भी ऐसा जैसे खिलता कमल,
नहीं थी खबर के मिलेंगे यू कफ़न,
के गुस्ताखियों के खेल यू खेले जायेंगे !
के मेरे सपनो के खिलोने सारे मेले में छुट जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

के सायद मैंने अपने आपको पत्थर बना लिया था,
के तकदीर ने लड़ते-२ जीना सिखा दिया था,
तभी तो मेरे जख्म खुले के खुले रह गए,
जो गैरों से मिले वो तो सी गए,
जो अपनों से मिले वो जख्म हरे रह गए,
के मुझे क्या पता था मुक्कदर से इस कदर टकरायेंगे !
के रुस्वाइयां मिलेंगी, और हम अकेले रह जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

मैंने हर गम पीने की कोशिश की,
मैंने हर जख्म सिने की कोशिश की,
मैं हर दोर में करता रहा खुद से बेवफाई,
मगर मेरा विस्वास मेरी सच्चाई काम न आई,
सायद उस खुदा को मंज़ूर न था के मुझे मिलनी ही थी रुसवाई,
के मैं इतना बुरा भी ना था की यू ठुकरा दिए जायेंगे !
के इस नीले गगन के नीचे मेरे लिए तनहाइयों के बादल नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं.................

जब तक मैं समझ पाता दुनिया के फैसले,
मेरी आँखों पे पड़े थे यारो के काफिले,
विस्वास बहुत था मुझे अपनों पर,
मगर वो भी मुझे गैरों की भीड़ में खड़े मिले,
के सायद अब लोग सोह्रतों से पहचाने जायेंगे !
मुझ जैसे लोग भीड़ में अकेले नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..............

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