Thursday, November 18, 2010
अब और क्या देखना बाकी है
अब और क्या देखना बाकी है..क्या कभी ये मोन संस्कृति भी जागी है...
ये कटा हुआ सव अपने धर्म का रोता दर्शन है...क्या इन हत्यारों में अभी भी कुछ शर्म बाकी है...
अपनी आजादी का मोल आज हमने ये पाया है...
की गैरो की भीड़ में आज अपनों ने लहू बहाया है,
इस पवित्र गो माता को सड़क बीच कटवाया है,
क्या यही आजादी का मतलब है, और व्यर्थ सहिदों की कुर्बानी है....
अब और क्या देखना बाकी है.......
कबतक यू गो माता काटी जायेगी,
कब तक ये पाप की आंधी गो माता पर छाएगी,
कब तक यू गो माता का लहू बहाया जाएगा..
यही हुआ तो इस धरती का अंत समीप आ जाएगा.
गो माता हिन्दुस्तानी आँखों का निर्मल पानी है,
इसकी लाज हमें बचानी है..
अब और क्या देखना बाकी है...
के मानव अब सायद मानवीयता का दर्शन भूल चूका,
अपनी संस्कृति के वर्चस्व को धर्मकर्म में तोल चूका,
ये भी सायद इतिहासकारों की रची कहानी है,
"महेश" आज "गो" खून से लथ-पथ मात्रभूमि अनजानी है,
गो माता की आँखों से गिरता निर्मम पानी है,.
अब और क्या देखना बाकी है...
"Mahesh Yadav"
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Poem
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