मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है,
मैंने अपनों का हिसाब लिखा
है,
ज़िंदगी फिर एक जुआ ही है,
मैंने फिर अपने को बर्बाद
लिखा है॥
मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है.....
कीस्ती माझी सब थके हुए है,
सागर-नदिया सब किनारे छूट
गए है,
अपने प्यारे से सब रूठ गए
है,
मैंने फिर भी दिल को अपने
आबाद लिखा है॥
मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है.....
ज़िंदगी का ये दौर वही है,
आंखो मे अब चोर वही है,
कुमलाए नन्हे पैरो का शोर
वही है,
रूठे हुए शब्दो का फिर से
हिसाब लिखा है॥
मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है.....
दिवानेपन का वो मंज़र,
मेरे हाथो मे फिर खंजर,
फिर आंखो से गम गिरता शर-शर,
मैंने फिर गिरते-गिरते अपने
को नायाब लिखा है॥
मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है.....
कलम सहारा बन जाती है,
आँख का तारा बन जाती है,
चलते चलते जब भी रुका हूँ,
“महेश” तेरे चलने का सहारा बन जाती है,
फिर लिखते-लिखते सबको आदाब लिखा है॥
मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा
है.....
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