लूटे हुए आदर्शो पर हम चीख-२ कर रोते है ।
अपने लहू की बूँद जला-२ के दो अन्न के दाने बोते है ॥
पहले जयादा सोचा करता था ।
अपनों का पेट भरने को हर रोज मैं मरता था ॥
सायद मेरी गरीबी में योजना आयोग का एक अहसान हुआ ।
32 रुपे में अमीरी का नया फरमान हुआ ॥
अब मैं पैदल ही घर से चल पड़ता हूँ ।
रिक्शा के भाड़े को लेकर अपनों से लड़ पड़ता हूँ ॥
अब अपनी ३२ रुपे की अमीरी पर घमंड आ जाता है ।
लेकिन ये सब सोचते ही गरीबी का साया फिर से छा जाता है ??
bahot umda likha mahesh aapney
ReplyDeletethanks Varun Ji..
ReplyDeleteYe Sarkar kiski hai, iska niyam hai,
ReplyDeleteGaribo ko bhagao, Garibi ko nahi